आम की फसल को कीट एवं व्याधियों से बचायें-
रहीमाबाद लखनऊ प्रदेश में आम के गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिये सम-सामयिक महत्व के कीट एवं रोगों का उचित समय प्रबन्धन नितान्त आवश्यक है, क्योंकि बौर निकलने से लेकर फल लगने तक की अवस्था अत्यन्त ही संवेदनशील होती है। वर्तमान में आम की फसल को मुख्य रूप से भुनगा, कैटरपिलर(कटर कीट),ब्लैक इंच वार्म एवं मिज कीट तथा झुलसा और एन्थ्रेकनोज रोग से क्षति की सम्भावना रहती है।
आम के बागों में भुनगा कीट पत्तियों एवं छोटे फलों के रस चूसकर हानि पहुँचाते हैं प्रभावित भाग सूखकर गिर जाता है साथ ही यह कीट मधु की तरह का पदार्थ भी विसर्जित करता है, जिससे पत्तियों पर काले रंग की फफूँद जम जाती है, फलस्वरूप पत्तियों द्वारा हो रही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया मंद पड़ जाती है। इसी प्रकार आम के बौर में लगने वाला मिज कीट मंजरियों एवं तुरन्त बने फलों तथा बाद में मुलायम कोपलों में अण्डे देती है, जिसकी सूँडी अन्दर ही खाकर क्षति पहुँचाती है, प्रभावित भाग काला पड़कर सूख जाता है। भुनगा एवं मिज कीट के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड २ मि०ली० प्रति ली० पानी के साथ या थायोमेथेक्जाम २ ग्रा० प्रति ली० पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें।