इसमें कोई शक नहीं कि वर्ष 2023 को हिंदी की दुनिया में स्त्री कविता वर्ष के रूप में याद रखा जाएगा. 21वीं सदी में ही नहीं 20वीं सदी के किसी दशक में शायद ही कभी एक साल में 15 से अधिक कवयित्रियों के कविता संग्रह आए हों. इस दृष्टि से देखा जाए तो यह स्त्री कविता वर्ष मानने में किसी को कोई हिचक नहीं होनी चाहिए. इतना ही नहीं स्त्री कविता से सम्बंधित दो पत्रिकाओं के अंक भी आए और ‘प्रतिरोध के स्त्री स्वर’ जैसा एक संचयन भी आया जिसमें बीस कवयित्रियों की कविताएं शामिल हैं.
सबसे दिलचस्प बात यह है कि गत वर्ष हिंदी की तीन पीढ़ियां की कवयित्रियों की किताबें सामने आईं और इन संग्रह से हिंदी कविता का काफी विविधपूर्ण परिदृश्य बनता है. कात्यायनी की पीढ़ी के बाद आई कवयित्री नीलेश रघुवंशी से लेकर युवा कवयित्री पार्वती तिर्की तक की लगभग 15 कवयित्रियों के कविता संग्रह सामने आना किसी साहित्यिक घटना से कम नहीं है. लेकिन जिस तरह साहित्य जगत को इन संग्रहों का स्वागत करना चाहिए था वैसा स्वागत हुआ नहीं. हिंदी की पितृसत्तात्मक आलोचना अभी मौन है. नीलेश रघुवंशी का पांचवा कविता संग्रह उनकी काव्य यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव को दर्ज करता है. गत दिनों प्रख्यात कवि आलोक धन्वा ने ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान’ समारोह में स्वीकार किया कि इस समय स्त्री कविता पुरुष कविता से अच्छी लिखी जा रही है.
संभव है, कविता संग्रहों की संख्या अधिक हो पर कम से कम दस संग्रह ऐसे हैं जिनका नामोल्लेख किया जाना चाहिए और उनमें से तीन-चार काव्य संग्रह तो ऐसे हैं जिन्हें हिंदी कविता में बरसों तक याद रखा जाएगा.
इस साल प्रिया वर्मा और नेहा नरुका का पहला संग्रह प्रकाशित होना एक महत्वपूर्ण साहित्यिक घटना है. विजय कुमार और कुमार अम्बुज ने इन पर नोटिस लिया है. राजेश जोशी ने सविता सिंह द्वारा संपादित ‘प्रतिरोध के स्त्री स्वर’ को उल्लेखनीय संचयन माना है.
हिंदी की दुनिया में लगभग हर साल कोई न कोई नई कवयित्री सामने आ रही हैं और अपने पहले कविता संग्रह से सबका ध्यान खींच रही हैं.
21वीं सदी के आरंभिक दशक में विपिन चौधरी, वाज़दा खान और लीना मल्होत्रा ने अपने पहले कविता संग्रह से कदम रखा तो बाद में ज्योति चावला, बाबुषा कोहली, मोनिका कुमार, रश्मि भारद्वाज, अनुराधा सिंह, सुजाता, मृदुला शुक्ला और शैलजा पाठक की खेप आई. इनके बाद ज्योति शोभा, जसिंता केरकेट्टा और फिर रुचि भल्ला, सपना भट्ट, सुलोचना वर्मा, रूपम मिश्र, अनुपम सिंह, विशाखा मुलमुळे, अनुराधा ओस और गुंजन उपाध्याय पाठक जैसी युवा कवयित्रियां आईं, उनके संग्रह आये.
फिर इस साल विजया सिंह, प्रिया वर्मा, नेहा नरुका, सुलोचना वर्मा, रूपम मिश्र जैसी नई कवयित्रियों के पहले संग्रह आये, हालांकि इन्हें भी लिखते हुए काफी अरसा हो गया पर इन तीनों ने अपनी कविताओं से हमें चकित और विस्मित किया है. हिंदी कविता का विस्तार करते हुए नया संसार भी रचा है. इस साल वरिष्ठ कवयित्री लीना मल्होत्रा, बाबुषा कोहली, अनुराधा सिंह, रश्मि भारद्वाज, मनीषा झा, निर्देश निधि, विशाखा मुलमुळे, वंदना मिश्र, पार्वती तिर्की के अलावा प्रकृति कगरेती, विशाखा मुलमुळे और उषा राय के संग्रह भी आये तो भोपाल की तीन कवयित्रियों संगीत गुंदेचा, सविता भार्गव और आरती के भी संग्रह आये जो पहले से लिख रही हैं. आरती ने बहुत धारदार कविताएं लिखी हैं. उनकी रचनाओं में तीखापन बहुत है और राजनीतिक रूप से सजग कवि हैं. प्रिया वर्मा बहुत संवेदनशील और गहरी कवयित्री हैं. उनके यहां कविताओं में नवाचार अधिक है भाषा और शिल्प के स्तर पर. पार्वती तिर्की के संग्रह से इस वर्ष आदिवासी कविता का भी विस्तार हुआ है.
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FIRST PUBLISHED : December 19, 2023, 11:56 IST