देश के 19वें चीफ जस्टिस ईएस वेंकटरमैया (Justice ES Venkataramiah) कभी शिक्षक हुआ करते थे. बाद में उन्होंने वकालत शुरू की और सीजेआई की कुर्सी तक पहुंचे. CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने जस्टिस वेंकटरमैया की जिंदगी से जुड़े तमाम दिलचस्प किस्से साझा किये और उन्हें अपना प्रेरणास्रोत बताया. मौका था नेशनल लॉ स्कूल ऑफ़ इंडिया यूनिवर्सिटी द्वारा बेंगलुरु में आयोजित जस्टिस वेंकटरमैया सेंटिनल मेमोरियल लेक्चर का.
सीजेआई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने कहा कि जस्टिस वेंकटरमैया को पढ़ना बहुत पसंद था और यह उनका पहला और आखिरी प्यार था. जस्टिस वेंकटरमैया (Justice Venkataramiah) ने बेंगलुरु में बतौर वकील अपना करियर शुरू किया, फिर वह कर्नाटक हाईकोर्ट के जज बने. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में आए और यहां करीब एक दशक बिताया. चीफ जस्टिस ने कहा कि वेंकटरमैया की जिंदगी बहुत प्रेरणादायी है. कानून के पेशे में आने से पहले वह शिक्षक हुआ करते थे, इसीलिए कानून की उनकी समझ में अकादमिक दृष्टिकोण की झलक भी मिलती थी.
प्रेस की आजादी के पैरोकार
चंद्रचूड़ ने बताया कि जस्टिस वेंकटरमैया ने 1945 में कानून पढ़ाना शुरू किया, फिर न्यायपालिका में आए तो तमाम महत्वपूर्ण फैसले दिए. मानवाधिकार से लेकर प्रेस की आजादी जैसे मसले पर उनके जजमेंट आज भी बहुत महत्वपूर्ण हैं. उनके फैसलों से पता लगता है कि वह पर्यावरण के प्रति बहुत सजग थे और अभिव्यक्ति की आजादी के तगड़े पैरोकार थे.
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किसे ‘स्वामीजी’ के नाम से बुलाते थे जज?
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि 1980 के दशक में सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच भाईचारा की तगड़ी भावना थी, जैसा अब है. तब भी कई जज अपने निकनेम से जाने जाते थे. उन दिनों दो जज अपने निक नेम से बहुत मशहूर थे. मैं एक का नाम लूंगा, लेकिन दूसरे का नाम नहीं बताऊंगा.
सीजेआई ने कहा कि उन दोनों एक जज का नाम लॉर्ड विल्बरफॉस (Lord Wilberfoss) पड़ गया था, जबकि दूसरे जज को मेरे पिता ‘स्वामीजी’ के नाम से बुलाते थे, क्योंकि उन्हें संस्कृत और धर्म-आध्यात्म की गहरी समझ थी. आपको बता दें कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाई.वी. चंद्रचूड़ भी भारत के प्रधान न्यायाधीश रह चुके हैं.
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FIRST PUBLISHED : December 19, 2023, 10:19 IST